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पानवाला
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मुझे पसन्द कर ले । लक्ष्मी का पति हो जाने पर दूल्हा बने फिरने की आवश्यकता नहीं रह जायगी ।
शायद इसी से हो कि जब चाँदनी चौक में पहुँचता हूँ तभी पानवाला मुझे पा लेता है। जाने मेरी ताक लगाता रहता है क्या ? पाँच-सात पान उसके क्या लिये कि समझता है. रोज ही पैसा बर्बाद करूँगा । लेकिन जब वह सामने आकर सलाई से पान उठाकर मुस्कराता हुआ कहता है, 'लीजिए बाबूजी,' तब इन्कार नहीं किया जाता । यह पैसा पान का नहीं, मैं तमाशे का देता हूँ । मुझे इस पानवाले का बड़ा तमाशा मालूम होता है । कभी मैं उसमें अन्तर नहीं देखता । हर रोज वैसा ही झक साफ करता रहता है, किसी भी दिन जरा भी मैला नहीं रहता; उतनी ही साफ उसकी हजामत रहती है, और ठीक उतना ही बारीक कटी हुई किनारा - साफ मूँछें | और खूब चमचमाती चाँदी की थाली ।
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मैंने उसका सदा यही हिसाब देखा । इक्का-दुक्का सुपरिघानित स्त्री कहीं भी देख पाएगा तो पहुँच जाएगा और मुस्कराकर पान पेश करेगा । मुझे यह बुरा लगता है । लेकिन जब मेरे सामने कर वह मुस्कराता है तो उसमें दोष मुझ से नहीं निकाला जाता । जैसे उस समय वह मुस्कराहट मुझे बुरी नहीं मालूम होती ।
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एक दिन मेरे साथ मेरी पत्नी, एक बहिन और विवाह योग्य वयकी एक मेरी भतीजी, ये सब थीं । चाँदनी चौक में उन्हें कुछ सामान लेना था । एक दुकान, दो दुकान, चार दुकान, दुकानें देखते-देखते मैं थक गया । पर इन लोगों को कोई चीज ही पसन्द नहीं आई। दुकानदार यह दिखाए, वह दिखाए, भाँति-भाँति की चीज़ों का ढेर का ढेर सामने रख दे, पर वे सब की सब खराब निकलें; किसी का रंग गहरा हो जाय, किसी का ज्यादा हल्का; इसमें यह हो जाय तो उसमें कुछ और चीज़ जँचने के नजदीक
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