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________________ एक टाइप २६ जगह सब नामों के नीचे एक ही मूल्य के द्योतक हैं । सामाजिक प्राणी की हैसियत से अमुक ही उनकी जीवन की नीति होती है, वस्तुओं का अमुक मूल्य, और विचारों की वही एक काट की बनावट । वे अपना निज का व्यक्तित्व बनाने के झंझट से प्रारम्भ से ही बचे होते हैं और अपने विश्वास आप गढ़ने का कष्ट भी उन्हें उठाना नहीं होता। ऐसे ये विश्वासी जीव निरापद जीवन यापन करते हैं। ___ इसी भाँति मध्यम-मार्गी दीन-दुनियादार आदमियों की जाति का भी एक साँचा-सा बन गया है। वह मध्यम शिक्षा उठाकर, मध्यम नौकरी या मध्यम व्यवसाय में लग जाता है, और अपनी मध्यम गिरस्ती रचाता है । वह पाप से बचता है, दान-पुन्न करता रहता है । घर बनाता है, जीवन का बीमा कराये रखता है, और अन्तिम दिनों में परलोक-साधन के लिए व्यवस्थित रूप में भगवद्भजन करता है । चोरी उसके लिए पाप है, झूठ गुनाह, तीर्थयात्रा धर्म, रिश्वत हक, और सूद सबसे ईमानदारी की प्राय । पैसा बड़प्पन है, और बड़ा मकान, बड़ी गिरस्ती और बड़ी आमदनी ही इसके लिए प्रतिष्ठा का लक्षण और सफलता की पहचान है । वह समाज के धरातल को बताता है । वह समाज की रीढ़ है। बँधा धर्म, बँधी आय और बँधे कर्म का यह स्वस्थचित्त और सन्देह-मुक्त जीव, अर्थप्रधान जलवायु में अच्छा मग्न रहता है। रेलवे की वर्दी का जाड़ों का एक नीला कोट सज्जन पहने थे, गोल फेल्ट-कैप थी, ठीक-ठाक कमीज, ठीक-ठाक धोती और सुव्यवस्थित रूप में तस्मों से बँधा हुआ काला शू । जेब में एक किताब पड़ी हुई थी। सुघराई से रखी इज्जतदार मूछे थीं और शेव आज ही किया हुआ था । अवस्था पचास-पचपन होगी। "श्राप कहाँ जा रहे हैं ?"
SR No.010359
Book TitleJainendra Kahani 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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