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________________ श्राम का पेड़ १३९ दूध के भाग के झरने की तरह हृदय में से फूट उठ रही है। उस समय वह बाल- युवक मेरे हृदय के निकट, मानों मेरा पुत्र ही हो उठा । और मुझे जान पड़ा कि यदि ऐसी आत्मीयता के भाव का उदय मुझ में इस क्षण हुआ है, तो किरपा तो अपने प्रकृत स्नेहसिक्त हृदय की शक्ति से हम सबको अपने लिए आरम्भ से ही सगे चाचा-ताऊ - सरीखे बना सका है। मैंने उससे कुछ बोलने के लिए पूछा, "भाई,, तुम्हारे पिता कहाँ हैं ? " उसने कहा, "आते ही होंगे। वह आपसे तो पल भी देर नहीं करेंगे। पर, वह गाय का बड़ा बछड़ा खूब शैतान हो गया है, वही देर करा रहा होगा |... बस आते ही होंगे ।...११ इस आत्मीयता के साथ बिना भूमिका के जो बछड़ा सामने ला दिया गया, वह आप ही आप मेरे निकट परिचित बन गया । एक शैतान बछड़ा कूद - उछल कर रहा है, खूँटे से बँधना ही नहीं चाहता, रस्सी समेत जगतराम को भी खींचते हुए ले चलने का दम भरकर इधर-उधर कुलाँचें मार रहा है, मेरी सहानुभूति ने यह चित्र मेरी आँखों के सामने ला दिया । - मैंने कहा, "बछड़ा बड़ा शैतान है ?" वह बोला, "अजी, क्या पूछो आप ? मेरे हाथ तो बँधता ही नहीं, मुझे मारने दौड़ता है । वह तो मैं बच जाता हूँ, नहीं तो..." मैंने कहा, "बिलकुल सफेद है, माथे पर काला - काला...." उसने कहा, "हाँजी, हाँजी, बिलकुल... । श्रपने कब देख लिया ?" मैंने कहा, "देखा तो नहीं, यों ही कहा । " उसने बताया, "माथे पै आधा काला चाँद सा बन रहा है । और कहीं एक दाग नहीं, कैसा हो ।..." इतने में जगतराम का आना हो गया ।
SR No.010359
Book TitleJainendra Kahani 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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