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________________ कः पन्था १२५ कि उन्हें बिलकुल उम्मीद न थी कि वह अपनी जिम्मेदारी इतनी महसूस करेगा...। दो साल तक, मैं समझता हूँ, मुझे यदा-कदा 'ईस्ट-इंपोरियम' का वह बड़ा बोर्ड दिखाई देता रहा। उसके बाद मुझे नहीं मालूम क्या हुआ । दूकान वही जवाहरात और अजायबात की वहाँ रही; पर बोड वह न था। मुझे लालचन्द भी नहीं मिला, न उसके सम्बन्ध की और कोई सूचना ही मिली। मैं बीच-बीच में लालचन्द के प्रति अपने भीतर सस्नेह चिन्ता का अनुभव करता था, ओर मुझे अचरज भी था कि दो-तीन वर्ष हो गये हैं, लालचन्द के विषय में मुझे कोई सूचना क्यों नहीं मिली । आज अभी दो घण्टे पहले रतनचन्द ( लालचन्द का भाई ) मेरे पास होकर गया है। उसने मुझे बताया कि लालचन्द पागल हो गया है। वह घर के एक कमरे में खाली तख्त पर रस्सी से बंधा हुआ पड़ा है। वह चीखता-चिल्लाता है और उसकी बुरी हालत है । नाखूनों और दाँतों से अपने को काट लेता है। रतनचन्द ने चाहा कि मैं उसके साथ तुरन्त घर चलँ। मैंने कह दिया, "मैं तीन-चार घण्टे बाद श्राऊँगा; क्योंकि में यों नहीं जाना चाहता, कुछ सोचकर जाना चाहता हूँ।" ___क्या आप लोगों को लालचन्द के साथ इतना वास्ता अनुभव होता है कि मुझे लाचार करें कि लौट आने पर बताऊँ कि मैंने क्या पाया ?
SR No.010359
Book TitleJainendra Kahani 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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