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जैनेन्द्र की कहानियां [छठा भाग] मकान के दालान के किनारे खड़ा हो गया। उन्होंने देखा, साधु खूब है, पूर्ण युवा है, बड़ा सुन्दर है । बदन कठोर बिलकुल नहीं है, जैसे सर्वदा आराम से कपड़ों में छिपा रहा है । जैसे इस बदन को विलास की आदत हो। सोचा, यह फकीर नहीं है, चालाक है।... समझा होगा, अन्दर कोई मर्द नहीं है...तभी चला आया...। जोर से बोले, “क्या है ?"
साधु ने कहा, "फकीर आ गया है, भीख माँगता है।" दारोगा ने कहा, "देखता नहीं किसका घर है ?
मतलब था कि दारोगा का घर है जिन्होंने एक-से-एक बदमाश को सीधा कर दिया है।
साधु ने आते ही देख लिया था, कि एक मुसलिम गृह में उसका आना हो गया है, लेकिन जब ऐसा ही हो गया, तो इसमें कोई विशेष अनौचित्य भी उसे नहीं जान पड़ा और वह दारोगा की इस या किसी प्रकार की ख्याति से परिचित न था । उसने कहा, "हिंदू उसका है, मुसलमान उतका है । सब उसका है । सब साधु का है। साधु भीख माँगता है।"
दारोगा ने देखा-यह शख्स हठी है, दिलेर है, पक्का शरारती दीखता है । कुर्सी से उठ खड़े हुए, एक कदम आगे बढ़ पाये, और बोले, "भीख माँगता है, तो मकान के अन्दर घुस आया ?..."
साधु ने कहा, "अन्दर-बाहर सब उसका है । मकान-बन सब उसका है। साधु परदा नहीं रखता । वह भीख माँगता है।"
दारोगा को यह अच्छा नहीं लगता था। साधु की इस हठ-पूर्ण धृष्टता को कैसे बढ़ने दिया जाय ? गर्मी ले आये, बोले, "भीखवीख यहाँ कुछ नहीं मिलती। समझे ?"
साधु ने जैसे दारोगा की उत्कट अनिच्छा और उग्रता न देखते हुए कहा, "भीख दो, सवाब होगा।"
साधु के शब्दों में जैसे चुनौती हो । साधु की मुद्रा जैसे कह