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________________ आतिथ्य उनका घर भी दिल्ली में है, पर जान-पहचान हुई यहाँ इतनी दूर आकर । वे भी फर्स्ट ईयर में दाखिल हुए हैं; मैं भी । विषय भी एक ही है- दोनों के पास साइन्स । होस्टल में कमरे भी पास-पास हैं । हमारी जान-पहचान खूब गहरी होने लगी। धीरे-धीरे स्थान का नयापन भी दूर हो गया और हम होस्टल की ज़िन्दगी में मिल गये । अभी तक थे तो होस्टल में ही, पर कुछ बेसुरे - से लगते थे । मेरे मित्र पैसे और दिल से अच्छे हैं। खुले हाथ खर्च करते हैं। हाँ, जरा पढ़ने में थोड़ा कुछ...। बड़े कमरे में रहते हैं, श्री-सीटेड है वह, और इसलिए तिगुना किराया भुगताते हैं । उनके साथ उस कमरे में ही उनका एक नौकर और एक रसोइया रहता है। थोड़े दिन बीते कि उनके चारों ओर एक मण्डली जुट गई । या यह कहें कि उनके रसोइये के चारों ओर एक मण्डली जुट गई । कुछ मित्रों ने मुफ्त के नौकर और मुफ्त के श्रीमान् को पाकर एक नया मे खड़ा कर लिया है। मैं भी उस मेस ही में भोजन पाता हूँ । १०२
SR No.010359
Book TitleJainendra Kahani 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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