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वह साँप
एक साँप था। वह बहुत जहरीला था, पर उसको इस बात का दुःख था कि वह जहरीला क्यों है ।
एक बार एक देव- बालक क्रीड़ा करता हुआ वन में से जा रहा था । देव- बालक को किसी अनर्थ की आशंका न थी । वह किलकारी मारता हुआ उछलता चला जा रहा था। बालक बहुत सुन्दर था । उसका पैर साँप की पूँछ पर पड़ गया ।
उसकी पूँछ जो दबी, तो साँप को गुस्सा आ गया। उसने बालक को काट लिया। बालक हँसता-हँसता वहीं धरती पर लोट
गया ।
साँप ने जाकर उसे सूँघा । बालक की जान निकल गई थी। साँप ने देखा कि बालक बहुत ही सुन्दर था। उसका मुख अब भी जैसे हँस रहा हो। उस समय साँप को बहुत दुःख हुआ । उस दुःख में दो रोज तक उसको कुछ भी नहीं सूझा। वह बालक को चारों ओर कुण्डलाकार घेर कर बैठा रहा, न हिला न डुला, मानो वह यम के खिलाफ बालक की देह का पहरा देता हो । जब शनैः-शनैः H22.91 ५५