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चिड़िया की बच्ची
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तुम मुझे खुश रखना । और तुम्हें क्या चाहिए ? माँ के पास बताओ क्या है ? तुम यहाँ ही सुख से रहो, मेरी भोली गुड़िया । "
चिड़िया इन बातों से बहुत डर गई । वह बोली, “मैं भटक कर' निक आराम के लिए इस डाली पर रुक गई थी । अब भूल कर भी ऐसी ग़लती नहीं होगी। मैं अभी यहाँ से उड़ी जा रही हूँ । तुम्हारी बातें मेरी समझ में नहीं आती हैं। मेरी माँ के घोंसले के बाहर बहुतेरी सुनहरी धूप बिखरी रहती है । मुझे और क्या करना है ? दो दाने माँ ला देती है और जब मैं पर खोलने बाहर जाती हूँ तो माँ मेरी बाट देखती रहती है। मुझे तुम और कुछ मत समो, मैं अपनी माँ की हूँ ।"
माधवदास ने कहा, “भोली चिड़िया, तुम कहाँ रहती हो ? तुम मुझे नहीं जानती हो ?"
चिड़िया, "मैं माँ को जानती हूँ, भाई को जानती हूँ, सूरज को और उसकी धूप को जानती हूँ। घास, पानी और फूलों को जानती हूँ । महामान्य, तुम कौन हो ? मैं तुमको नहीं जानती ।"
माधवदास, “तुम भोली हो चिड़िया । मुझको नहीं जाना, तब तुमने कुछ नहीं जाना । मैं ही तो हूँ सेठ माधवदास । मेरे पास क्या नहीं है। जो माँगो, मैं वही दे सकता हूँ ।"
चिड़िया, “पर मेरी तो छोटी-सी जान है । आपके पास सब कुछ है। तब मुझे जाने दीजिए ।”
माधवदास, “चिड़िया, तू निरी अनजान हैं। मुझे खुश करेगी तो मैं तुझे मालामाल कर सकता हूँ ।"
चिड़िया, "तुम सेठ हो । मैं नहीं जानती, सेठ क्या होता है । पर सेठ कोई बड़ी बात होती होगी। मैं अनसमझ ठहरी। माँ मुझे बहुत प्यार करती है । वह मेरी राह देखती होगी। मैं मालामाल