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जैनेन्द्र की कहानियाँ [तृतीय भाग ]
होकर क्या होऊँगी, मैं नहीं जानती । मालामाल किसे कहते हैं ? क्या मुझे वह तुम्हारा मालामाल होना चाहिए ?”
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सेठ, "अरी चिड़िया, तुझे बुद्धि नहीं है । तू सोना नहीं जानती, सोना ? उसी की जगत् को तृष्णा है । वह सोना मेरे पास ढेर का ढेर है । तेरा घर समूचा सोने का होगा । ऐसा पिंजरा बनवाऊँगा कि कहीं दुनिया में न होगा । ऐसा, कि तू देखती रह जाय । तू उसके भीतर थिरक-फुदक कर मुझे खुश करियो । तेरा भाग्य खुल जायगा । तेरे पानी पीने की कटोरी भी सोने की होगी ।" चिड़िया, "वह सोना क्या चीज होती है ?"
सेठ, " तू क्या जानेगी । तू चिड़िया जो है। सोने का मूल्य जानने के लिए अभी तुझे बहुत सीखना है। बस, यह जान ले कि मैं सेठ माधवदास तुझसे बात कर रहा हूँ। जिससे मैं बात तक कर लेता हूँ उसकी किस्मत खुल जाती है। तू अभी जग का हाल नहीं जानती । मेरी कोठियों पर कोठियाँ हैं, बगीचों पर बगीचे हैं । दास-दासियों की संख्या नहीं है । पर तुझ से मेरा चित्त प्रसन्न हुआ है । ऐसा वरदान कब किसी को मिलता है । री चिड़िया, तू इस बात को समझती क्यों नहीं ?”
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चिड़िया, “सेठ, मैं नादान हूँ । मैं कुछ समझती नहीं । पर मुझको देर हो रही है । माँ मेरी बाट देखती होगी ।"
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सेठ, “ ठहर ठहर, इस अपने पास के फूल को तूने देखा ? यह एक है। ऐसे अनगिनती फूल मेरे बगीचों में हैं। वे भाँति-भाँति के रङ्ग के हैं। तरह-तरह की उनकी खुशबू है। चिड़िया, तैंने मेरा चित्त प्रसन्न किया है और वे सब फूल तेरे लिए खिला करेंगे। वहाँ घोंसले में तेरी माँ है, पर माँ क्या है ? इस बहार के सामने तेरी माँ क्या है ? वहाँ तेरे घोंसले में कुछ भी तो नहीं है । तू अपने को