________________
५० जैनेन्द्र की कहानियां [तृतीय भाग] है। मैं अभी चली जाती हूँ। पल-भर साँस लेने में यहाँ टिक गई थी।" ___ माधवदास ने कहा, "हाँ, बगीचा तो मेरा है। यह संगमरमर की कोठी भी मेरी है। लेकिन इस सबको तुम अपना भी समझ सकती हो । सब कुछ तुम्हारा है । तुम कैसी भोली हो, कैसी प्यारी हो । जाओ नहीं, बैठो । मेरा मन तुमसे बहुत खुश होता है।"
चिड़िया बहुत कुछ सकुचा गई। उसे बोध हुआ कि यह उससे गलती तो नहीं हुई कि वह यहाँ बैठ गई है। उसका थिरकना रुक गया। भयभीत-सी वह बोली, “मैं थक कर यहाँ बैठ गई थी। मैं अभी चली जाऊँगी । बगीचा आपका है । मुझे माफ करें !" ___ माधवदास ने कहा, "मेरी भोली चिड़िया, तुम्हें देखकर मेरा चित्त प्रफुल्लित हुआ है । मेरा महल भी सूना है। वहाँ कोई भी चहचहाता नहीं है । तुम्हें देखकर मेरी रानियों का जी बहलेगा। तुम कैसी प्यारी हो, यहाँ ही तुम क्यों न रहो ?"
चिड़िया बोली, “मैं माँ के पास जा रही हूँ । सूरज की धूप खाने और हवा से खेलने और फूलों से बात करने मैं जरा घरसे उड़ आई थी। अब साँझ हो गई है और माँ के पास जा रही हूँ। अभी-अभी मैं चली जा रही हूँ। आप सोच न करें।"
माधवदास ने कहा, "प्यारी चिड़िया, पगली मत बनो । देखो, तुम्हारे चारों तरफ कैसी बहार है। देखो, वह पानी खेल रहा है, उधर गुलब हँस रहा है। भीतर महल में चलो, जाने क्या क्या न पाओगी। मेरा दिल वीरान है। वहाँ कब हँसी सुनने को मिलती है ? मेरे पास बहुत-सा सोना-मोती है। सोने का एक बहुत सुन्दर घर मैं तुम्हें बना दूंगा। मोतियों की झालर उस में लटकेगी।