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४० जैनेन्द्र की कहानियाँ [तृतीय भाग] रुपये की क्या बिसात ? राज का कोष आखिर किस लिए है ? महल से प्रजा खुश होगी। इससे महल में जितना भी धन लग सके उससे समिक भी कम नहीं लगना चाहिए । मन्त्री जी, महल के साथ मेरे सामने रुपए की बात लाने से मेरे राजापन का अपमान होता है । जाओ, सात मन्जिल के हवा-महल की तैयारी होने दो।" __ मन्त्री, "मैं अनुगृहीत हूँ। तो राज-कोषाध्यक्ष को श्राप आवश्यक आदेश-"
महाराज, "फिर आप छोटी बातें उठाते हैं, मन्त्री महाशय ।"
मन्त्री, "क्षमा, महाराज। तो कल ही काम प्रारम्भ हो जायगा। प्रजा-जन इस खबर को सुनकर बहुत कृतज्ञ होंगे। इससे उन्हें करने को काम मिलेगा और महाराज के अभिनन्दन के लिए अवसर प्राप्त होगा।" __ महाराज, “मन्त्री, इस हवा-महल के बारे में मुझ से और कुछ न पूछिए । आप उसके विषय में पूरे आजाद हैं। बनने पर उसका आनन्द और यश पाने को मैं हूँ। उससे पहले की सब बातें आप जानें ।"
मन्त्री, "जो आज्ञा !"
मन्त्री चले गये और अगले दिन से महल की तैयारी होने लगी। प्लान बने, नक्शे बने, और लोग चल-फिर करने लगे। इंजीनियर तत्पर हुए, ठेकेदार आगे आये और मजूर जुटाए जाने लगे। राजधानी के नगर में समारोह-सा ही दिखने लगा। मानो, जहाँ आर्द्रता भी सूख रही थी वहाँ ताजा लहू बह चला । ___ पर राजा ने कुछ नहीं सुना। उन्हें जैसे रखने को कुछ पता ही नहीं चाहिए । जब उन्हें काम के बारे में सूचनाएँ दी गई तब