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हवा-महल
३६ औरों को करना है । इससे आप सब अपने से ही आज्ञा ले लें। मैं पूछता हूँ कि प्रजा में जितने लोग हैं, उससे दस गुना रुपया महल में लगे तो यह हिसाब अशुद्ध तो नहीं कहलायेगा, क्यों मन्त्री जी ? इसमें अपनी राय बतलाइये ?"
मन्त्री, "जो महाराज की आज्ञा ।"
महाराज, "फिर मेरी आज्ञा! मेरा काम महल में रहने का होगा। इससे पहले का काम आप लोगों का और मजूर लोगों का है । मन्त्री जी, पैसे के हिसाब-किताब का काम भला कहीं राजोचित होता है ?"
मन्त्री, “जो इच्छा ।"
महाराज, "इतना ठीक हो गया न ? अब मुझे कुछ मत पूछिए । मेरी ओर से श्राप लोग इस महल के बारे में अपने को पूरा आजाद मानिए । पर हाँ, महल का नाम क्या रखिएगा?"
मन्त्री, "नाम !"
महाराज, “सुनिए ! 'हवा-महल' नाम हो तो कैसा ? बोलिए, पसन्द है ?"
मन्त्री, “बहुत सुन्दर, बहुत सुन्दर !"
महाराज, "तो फिर और भी सुनिए। आसमान सात होते हैं । महल में मन्जिलें भी सात हों । इन्द्र-धनुष के रंग कितने होते हैं,सात, कि कम ? खैर, मन्जिलें सात हों और इन्द्र-धनुष के सब रंग वहाँ हों। ठीक ?"
मन्त्री, "बहुत ठीक !"
महाराज, "सुनिए मन्त्री जी, हम राजा हैं न ? तुच्छ बातें हमारे लिए नहीं हैं। रुपए की बात सोचे वह राजा नहीं। वह मामूली लोगों का काम है । रुपए की मत सोचना । महल हवा-महल बनना है, तब