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बाहुबली
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भगवान् ने कहा, "ले सकते हो। अगर सत्य की खोज और सत्य की उपलब्धि राजत्व के द्वारा तुम्हारे निकट अगम्य बन गई है, तो तुम उसे अवश्य तज सकते हो। और मैं कह सकता हूँ, अगम्य बन जाना भी चाहिए। तुम पचास वर्ष से तो ऊपर के हुए न
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भरत सन्तुष्ट चित्त महलों को लौट आये । और दो दिन बाद घोषणा होगई कि चक्रवर्ती अब दीक्षा लेंगे ।
नगरवासियों में विकलता छा गई। साम्राज्य के प्रान्त प्रान्त से विरोध में अनुनय-प्रार्थनाएँ आई । किन्तु भरत ने एक प्रतिनिधिसभा को अपना उत्तराधिकार देकर दीक्षा ले ली।
और, राज्याभरण उतारते - उतारते मुहूर्त्त के अन्तर में उन्हें निर्मल कैवल्य की उपलब्धि होगई ।
लोगों ने क्लिष्ट भाव से भगवान् आदिनाथ की शरण में जाकर पूछा, “भगवन्, यह क्या बात है ? कुमार बाहुबली ने कितना घोर कायोत्सर्ग झेला, कैसा दुर्द्धर्ष तपश्चरण किया, आरम्भ से ही उन्होंने सब सुखों का विसर्जन किया, किन्तु उनको कैवल्य प्राप्त नहीं हुआ । और चक्रवर्ती भरत ने जीवन के अधिक भाग
ऐश्वर्य ही भोगा, प्राचुर्य ही देखा, विलास ही पाया । उनको राज-चिह्न उतारते - उतारते परम ज्ञान की प्राप्ति होगई ! भगवन्, बताइए, यह कैसे हुआ ? हमारा चित्त भ्रान्त है ।
भगवान् ने सदय भाव से कहा, "बाहुबली अविजित है । यह वह बेचारा नहीं भूल सका है ।"
लोगों को नाश्वस्त पाकर खिन्न स्मित के साथ भगवान् ने फिर कहा, "बाहुबली के मन में से एक फाँस नहीं निकली है । वही एक