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बाहुबली
बाहुबली ने घोर तपश्चरण किया, अति दुर्द्धर्ष, अति कठोर, अति निर्मम । वर्षों वे एक पैर से खड़े रहे । महीनों निराहार यापन किये । सुदीर्घ काल तक अखण्ड मौन साधे रखा। बरसों बाहर की ओर आँख खोलकर देखा तक नहीं। ___ उनकी इस तपस्या की कीर्ति दिग्दिगंत में फैल गई। देश-देश से लोग उनके दर्शन को आने लगे। भक्तों की संख्या न थी। उनकी महिमा और पूजा का परिमाण न था।
किन्तु बाहुबली भक्तों और उनकी पूजा से विमुख होकर घोरसे-घोरतर निर्जन दुष्प्राप्य एकान्त में चले जाते थे। एक स्थान पर एक बार अडिग, एकस्थ, एकाकी इतने काल तक खड़े रहे कि उनके सहारे बल्मीक जम गये, बेलें उठकर शरीर को लपेटने लगीं। उन बल्मीकों में कीड़े-मकोड़ों ने घर बना लिये।
इस कामदेवोपम सर्वाङ्गसुन्दर बलिष्ठ पुरुष ने निदारुण कायक्लेश में वर्षे-के-वर्ष बिता डाले। लोग देखकर हा-हा खाते थे
और निस्तब्ध रह जाते थे । उसकी स्पृहणीय काया मिट्टी बनी जा रही थी। स्त्रियाँ उस निमीलित-नेत्र, मग्न-मौन, शिला की भाँति खड़े हुए पुरुष-पुंगव के चरणों को धो-धोकर वह पानी आँखों लगाती थीं। उसके चरणों के पास की मिट्टी औषधि समझी जाती थी। पर वह सब ओर से विलग, अनपेक्ष, बन्द-आँख, बन्द-मुख, मलिन-देह, कृश-गात तपस्या में लीन था। - ___ यह था, पर कैवल्य उसे नहीं प्राप्त हुआ, नहीं हुआ । ज्ञानी लोग इस पर किं-विमूढ थे।
जीवन्मुक्त भगवान् श्रादिनाथ से लोगों ने पूछा, "भगवन,