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बाहुबली
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हुई । चक्रवर्ती का शासन-चक्र नगर के भीतर प्रविष्ट नहीं होता था। प्रत्येक द्वार से नगर में प्रवेश करने के यत्न किये गये, किन्तु शासन-चक्र ने साथ न दिया। इस पर लोगों को बहुत अचरज हुआ। तब राजगुरु की शरण में जाकर इसके कारण के विषय में उन्होंने जिज्ञासा की । गुरु ने बताया कि इस नगर में एक व्यक्ति है जो अविजित है । उस पर जब तक विजय न पा ली जाय तब तक चक्रवर्तित्व अखण्ड नहीं होता । और उस समय तक यह शासनचक्र नगर में प्रवेश न करेगा। राजगुरु ने यह भी बताया कि अभी तक जिन पर किसी ने विजय नहीं पाई है ऐसे व्यक्ति राजकुमार बाहुबली हैं। ___ भरत ने पूछा, "गुरुदेव, तब क्या बाहुबली से मुझे युद्ध करना होगा?"
राजकुमार ने कहा, "राजन् , तब तक चक्रवर्तित्व प्रसिद्ध है।" भरत ने कहा, "किन्तु मैं चक्रवर्ती नहीं होना चाहता।"
राजगुरु ने कहा, "राजर्षि, यह आपकी व्यक्तिगत इच्छाअनिच्छा का प्रश्न नहीं है । यह राजकारण का प्रश्न है।"
भरत ने कहा, "गुरुदेव, क्या भाई से भाई को लड़ना होगा?"
गुरुदेव ने कहा, “राजन् , राजकारण गहन है। राजकारणधर्मी का कौन भाई है, कौन भाई नहीं है ?"
भरत नतमस्तक हुए।
पाँच युद्धों द्वारा शक्ति-परीक्षण का निश्चय हुआ। दृष्टियुद्ध, जलयुद्ध आदि, और अन्त में मल्लयुद्ध ।
प्रारम्भ के चारों युद्धों में बिना प्रयास बाहुबली ही विजयी हुए । बाहुबली इस विजय से विशेष उल्लसित नहीं दिखाई देते थे,