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वे तीन गुरु ने कहा, "कवि तुम कृपालु हो। मुझे कुछ सूत कातना शेष है। और, और लोगों को भो मरना है । मैं जाऊँगा।"
गुरु चले गए।
बाँसुरी के रन्ध-रन्ध में फूट कर कवि की आत्मा धूप से धौले आकाश की गोद के कोने-कोने में टकरातो, विकल, पूछती मँडराने लगी, "ओ राम, तू सत्य है। पर कहाँ है ? मेरी वंशी की गुहार सब ओर खोज-खोज कर मेरे ही कानों में खो रही है। तू कहाँ है ? मेरी गुहार को, अरे, तेरी गोद में आश्रय नहीं है ? ओ राम, तू सत्य है । पर, कहाँ है ?" __युवक ने देखा, उसका विषाद तरल हो कर हलका मीठा पड़
युवक ने कहा, "गुरु अब ?" गुरु चर्खे पर बैठे थे।
कहा, "अब ?, यह प्रश्न छोड़ो। बहुतों को, सब कोमारना शेष है। जो मौत के पास पहुँचे हैं, उनके पास पहुंची। कर्म यही है । इसमें 'अब ?' को अवकाश कहाँ है ?"
युवक ने कहा, "गुरो!" गुरु ने कहा, "जाओ।"