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एक दिन
रात बीत गई। अगला सबेरा आ गया । मैंने कहा, "माँ, कैसा जी है ?"
माँ ने कहा, "जी वैसा ही है। बेटा, आज मैं अस्पताल नहीं जा सकूँगी। देह में इतना दम नहीं अब रह गया है। डोली में जाऊँ, किसी में जाऊँ, हार जाती हूँ। साँस फूल जाता है, शरीर पीर देने लगता है। बेटा, दवाई से भी कुछ आराम नहीं है। अब तू रहने दे, परमात्मा के आसरे छोड़ दे। जाना है, तो मुझे चली ही जाने दे। नाहक तुझे भी दुःख दे रही हूँ, और सबको भी दे रही हूँ" ___ मैंने तत्परता के साथ कहा, “सो क्या है, अम्मा ! अस्पताल क्यों जाना, डाक्टर यहीं देख जायगा।"
माँ ने कहा, "देखेगा, तो हाँ यहीं देख जायगा।"
मैंने कहा, "हाँ, जरूर यहीं देख जायगा, माँ! फिकर किस बात की है !"
माँ कुछ कहे कि खाँसी का दौरा था उठा । मैंने माँ को माथा