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जैनेन्द्र की कहानियाँ [तृतीय भाग ]
सेठ-सेठानी, पण्डित- पण्डितानी रूपमती और कान्चनमाला सभी अपने प्राप्य से सन्तुष्ट थे । महात्मा का दिया अब उनकी समझ में न देने के बराबर था। वे अब कुछ और चाह रहे थे, कुछ और माँग रहे थे । पर महात्मा नहीं आये ।
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