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धरमपुर का वासी
धरमपुर एक गाँव था । वहाँ करमसिंह नाम का एक किसान रहता था । उमर चौथेपन पर जा लगी तो अपने बेटे अजीत को बुला कर कहा, “देखो भाई अजीत अब हम तीर्थयात्रा पर जाएँगे। संसार किया, समय है कि अब भगवान् की सोचें । तुम दोनों जने मेहनती हो, जमीन अच्छी है और मालिक भी नेक है । किसी बुराई में न रहो तो भगवान् का नाम लेते हुए अच्छी तरह दिन बिता सकते हो । इसलिए मुझे अब जाने दो।"
करमसिंह दो बरस से इस दिन की राह देख रहा था। अजीत की माँ उठी तभी से उसका यहाँ चित्त नहीं है । अब अजीत का विवाह भी कर चुका है । और बहू भी हाथ बटाने वाली आयी है। इस तरह सब तरफ से निश्चिन्त होकर करमसिंह तीर्थ यात्रा पर चल दिया। कहा, "अजीत, हमारी भारत-भूमि में तीर्थ-धाम अनेक हैं । इससे मैं कब लौट सकूँगा, इसका ठिकाना नहीं । तुम बहुत आस में मत रहना।"
पूर्व-पश्चिम, दक्षिण-उत्तर के अनेक तीर्थों के उसने कार्य किये।