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उपलब्धि लाभ मुझे क्या होगा ! कहाँ नहीं, कहाँ से जाऊँगा, यही बतला सकता हूँ और यही काफी है । यहाँ से जाऊँगा।" ___ उन तीनों ने उनका श्राशय समझा तो कहा, "जिस तीर्थ-स्थान में कहिए कुटिया बनवा दी जाय। सेवकों का प्रबन्ध हो जायगा ।
आप धर्म-स्थान में रहिएगा।" __बोले, "नहीं, तुम नहीं समझे । इसमें तम्हारा दोष नहीं है। कोठी और सेवक जो मेरे साथ बाँधे रखना चाहते हो, इसमें भी तुम्हारी भावना का नहीं, संस्कार का दोष है । सुनो, कह नहीं सकता कहाँ वह बूँद मिलेगी जिससे प्यास बुझे। प्यास से मैं परेशान सा हूँ। बहुत त्रास है। अब वह सहा नहीं जाता। उसी यूँद को खोज में निकल पड़ना है ।"
बालक पिता को देखते रह गए । कम-अधिक चालीस वर्ष जिस ने साथ बिताए हैं वह पत्नी भी इन स्वामी को देखती रह गई । किसी तरह का कुछ भी नहीं समझ सकी। ___ सब बालकों ने कहा, "अब उम्र आई है कि हम कुछ समर्थ हुए हैं। अब तक आप को कष्ट ही दिया है। अब समय है कि आपकी सेवा से अपने को धन्य करें। वह अवसर न देकर हमें कृतघ्न बने रहने को क्या लाचार कर जाएँगा ?" __"तुम ठीक कहते हो। लेकिन पिता का कोई पिता है, यह क्यों भूलते हो । वह सब का पिता है । अब तक उसे भूले रहा, क्या यही पछतावा मेरे लिए काफी नहीं रहने दोगे ? न, इन बचे-खुचे दिनों को उनकी आँखों से बचाकर मैं उनके काम में नहीं ला सकूँगा । और अब उनके नाम से दूसरा मेरा काम क्या है।" पुत्र ने कहा, "यह आप कैसी बातें कर रहे हैं, पिता जी ?" "तुम्हारी हैरानी ठीक है, श्रीवर । तुम से आज मैं बुद्धि की