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________________ लाल सरोवर के बाहर की ओर एकटक निगाह से देखते हुए, बिना कुछ कहे, आँसू ढाल कर रोया करता था । उसे दुःख कुछ नहीं था। पर उस के मन में प्रीति बहुत मालूम होती थी। ___उसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता था कि वह पहले कहाँ रहता था, क्यों यहाँ आया और भविष्य के बारे में उसके क्या विचार हैं ? इस तरह उसे पाँच वर्प और बीत गए । एक दिन सवेरे के वक्त उसके पास दर्शनार्थ गाँव के लोग आये हुए थे कि उनमें से एक बोला, “महाराज, ईश्वर के जगत् में बुराई का फल बुरा और नेकी का फल अच्छा होता है । हम आँखों देखते है कि जो पाप-कर्म करता है उसकी पीछे बड़ी दुर्गति होती है।" ___ उस आदमी ने अपनी इस बात के समर्थन में उदाहरण दिया कि हमारे ही नगर के बाहर एक कोदिन रहती है । वह पहले वेश्या थी। अब सारे तन-बदन से उसके कोढ़ चू रहा है और वह अपनी मौत के दिन गिन रही है । उस वैरागी ने सुनकर कुछ नहीं कहा । जब लोग चले गए तो उसके मन में यह बात घूमती रही । पाप का फल दुःख और पुण्य का फल सुख होता है । यही वात उसके मन में चक्कर काटती रही। उस कोदिन की बात उसके मन से दूर नहीं होती थी, जो अब नगर से बाहर पड़ी अपनी मौत के दिन गिन रही है । उस रात वह रोज़ से अधिक प्रार्थना में लीन रहा और रोता रहा। शायद उसको रात को भी ठोक तरह नींद नहीं आई । वह कल्पना में उस कोदिन को देखने लगा। उसको मालूम होता था कि उस स्त्री की देह से दुर्गन्ध निकल रही है । तन छीज रहा है। और कोई सेवा के लिए उसके पास नहीं है । फूस की झोंपड़ी में पड़ी है
SR No.010356
Book TitleJainendra Kahani 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvodaya Prakashan
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1953
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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