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अनबन
धृति, “मैं अपने काम से काम रखूगी और कभी इनको शिकायत का मौका नहीं दूंगी।"
बुद्धि, "सच कहती हो?" धृति, "हाँ, सच कहती हूँ।" बुद्धि, "और मुझसे बुद्धि सीखोगी ?"
धृति, "वह सीखने की तो मुझमें योग्यता भी नहीं है।" बुद्धि हँस आई । बोली, "और अबके दोप हुआ तो दण्ड के लिए तय्यार रहोगी ?"
धृति, "रहूँगी।"
बुद्धि, “याद रखना, अबके तम घमण्ड की चाल चलीं, तो यहाँ से निकाल दी जाओगी।"
धृति यह सुनकर नीची गर्दन किये खड़ी रही। इस पर इन्द्र ने कहा, "बुद्धि, धृति बेचारी अदना है । उसका तुम खयाल न करो। उससे ठीक बोलना तक भी नहीं पाता । थोड़ा बोलती है, लज्जा
आती है । वह तुम्हारे रोष के लायक नहीं है। उससे बराबरी मत ठानो । धृति, चलो, बुद्धि के पैरों में पड़ो।"
धृति सुनकर चुपचाप बुद्धि के पैरों में पड़ गई। इस पर बुद्धि ने कहा, "धृति समझ लिया न । कहती होगी कि यह बुद्धि तो स्वर्ग की नहीं है, जाने किस नरक-लोक की है और अमर नहीं है । लेकिन अब देख लिया न, मैं क्या हूँ। अच्छा जाश्रो, अब अपना काम देखो।"
धृति इस पर वहाँ से अपना नीचा मुंह किये चली गई। उसके चले जाने के बाद बुद्धि ने कहा, “इन्द्रजी, श्राप के इस स्वर्ग में अभी बहुत-कुछ सुधार की आवश्यकता है। मिसाल के तौर पर यहाँ दूध और शहद की जो खिलखिलाती स्रोतस्विनी हैं, वे जहाँ-तह