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जैनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग] इस बार के हो चुकी है। पूछती हूँ तो कुछ कहता नहीं । देखो न क्या हो गया है ?" पिता ने कहा, "रामचरण, क्या बात है ?" रामचरण ने कहा, "कुछ नहीं, मतली है।" "कल भी थी ?" "हाँ"
पिता को और समझना शेष न रहा । वह यह भी न पूछ सके कि ऐसी हालत में क्यों तुम दोनों रोज दो-दो मील पैदल गये और आये। बस, उनकी आँखें भर आई और वह डाक्टर लाने की बात सोचने लगे।
रामचरण ने उनकी ओर देखकर कहा, "कुछ नहीं है बाबूजी, न खाने से सब ठीक हो जायगा।"