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मात्मशिक्षण साफ और बढ़िया थी, जिस पर किसी विषय का उल्लेख नहीं था; उसको खोला तो वह देखते-देखते रह गये । सुन्दर-सुन्दर अक्षरों में पुस्तकों में से चुने हुए नीति-वाक्य बालक ने उस कापी में अकित किए हुए थे। जगह-जगह नीचे लाल स्याही से महत्त्वपूर्ण अंशों पर रेखा खिंची हुई थी। उसमें पहले ही सके पर पिता ने पढ़ा : __ "बड़ों की आज्ञा सदा सुननी चाहिए और कभी उनको उत्तर नहीं देना चाहिए।"
"दुःख सहना वीरों का काम है। अपने दुःख में सज्जन पुरुष किसी को कष्ट नहीं देते और उसे शान्ति से सहते हैं।"
“रोग मानने से बढ़ता है। रोग की सबसे अच्छी औषधि निराहार है।" __ “घर ही उत्तम शिक्षालय है । सफल पुरुष पाठशाला में नहीं, जीवनशाला में अध्ययन करते हैं।"
"दृढ़ संकल्प में जीवन की सिद्धि है। जो बाधाओं से नहीं डिगता, वही कुछ करता है।"
पहले पृष्ठ के ये रेखांकित वाक्य पढ़कर कापी को ज्यों-का-त्यों खोले पिता सामने शून्य में देखते रह गये।
दफ्तर में भी वह शान्ति न पा सके। शाम को लौटे तो मानो अपने को तमा न कर पाते थे। घर आने पर पत्नी ने कहा, "अरे उसे देखो तो, तब से ही के हो रही है।"
रामरत्न ने आकर देखा। रामचरण शान्त-भाव से लेटा हुआ था।
पत्नी ने कहा, "स्कूल से आया तो निढाल हो रहा था। मुश्किल से दीवार पकड़ करके जीना चढ़ के आया। और तब से