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फोटोग्राफी
बहुतेरा पढ़ने-लिखने के बाद और माँ के बहुत कहने-सुनने पर भी जब रामेश्वर को कमाने की चिन्ता न हुई, तो माँ हार मानकर रह गई । रामेश्वर की बाल-सुलभ प्रकृति चाहती थी कि रुपये का अभाव तो न रहे; पर कमाना भी न पड़े । दिनका बहुतसा समय वह ऐसी ही कोई जुगत सोचने में बिता देता था। खर्च के लिए रुपये मिलने में कुछ हीला-हवाला होते ही, वह अपने को बड़ा कोसता था, बड़ा धिक्कारता था, मन-ही-मन प्रतिज्ञा करता था कि कल से ही किसी काम में लग जाऊँगा; और माँ से अनुनय-विनय करने पर या लड़-झगड़कर जब रुपया मिल जाता था, तब भी वह प्रतिज्ञा को भूलता नहीं था; पर जब अगला सवेरा होता तो फिर वह कोई सहल-सी जुगत हूँढने की फिक्र में लग जाता।
माँ ने भी होनहार को सिर नवाकर स्वीकार कर लिया। इस तेइस वर्षके पढ़े-लिखे निर्जीव काठ के उल्लूको, दुलार के साथ अच्छा
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