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जनता में पाटियाँ देखते हैं, सब प्रतिरोधों को बंधती हुई चली-ही-चली
आ रही हैं। एक, दो, तीन, चार...छः । मालूम हुआ छह खाटें मय साज-सामान साथ चल रही हैं । बिना खाट के सफर आप ही बताइये, आरामदेह कैसे हो सकता है। ___ इन्जन ने सीटी दी। चलो अब गाड़ी चलेगी। लोगों की साँस-में-साँस आई। उसी क्षण, उसी खिड़की की अभिसन्धि में से इन्सानियत के कुछ अाला नमूनों ने आना शुरू किया । यह एक, वह दो, लीजिये ये तीन । यों नौ अदद इन्सान आकर डब्बे में एकदम मौजूद हो गये । प्लेटफार्म से क्योंकर उचकते थे कि पैर मय और सिर से समतल हो कर चपटी खंजर की नोक के मानिन्द तीर की तेजी से आएँ और आकर अन्दर सरकन्डे से सीधे खड़े हो जाएँ । सच मानिये इस हिकमत को योगाभ्यास की चरम सिद्धि से किसी तरह कम मानने की हिम्मत नहीं होती है।
रेल सरकी । नौ और एक दस । वे दस एक तरफ और बाकी डिब्बा एक तरफ । अब जो दृश्य उपस्थित हुआ है, वर्णन में नहीं
आ सकता । सामान हटा, आदमी हटे और उन दसों के लिए और खाट आदि को लेकर जिन्दगी के सब सामान के लिए जगह निकली । असबाब भी बैठा, आदमी भी बैठे । चलिये शांति हुई। कुल हंगामे के बाद योगफल निकाला तो यह निकला कि चार उतरे और दस आये और छः से हमारी जनसंख्या बढ़ी।
पर प्रश्न संख्या का नहीं है। प्रश्न गुण का है। गुणों हजार से बढ़कर एक हो सकता है । और ये दस एक-से-एक बढ़कर थे। कौन थे और क्या थे, अनुमान से जानना मुश्किल होता है । कपड़े के नाम पर पाठ तो उनमें काफी अपरिग्रही थे । कन्धों पर बण्डी के नाम पर कुछ था और चीकट-चिथड़े से यथावश्यक अपनी