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तमाशा
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इन लोगों में से किसी ने हल्की आपत्ति और किसी ने समवेदना प्रकाशित की ।
धनीचन्दजी के आते ही विनोद ने कहा, "देखिए, यह बाबू धनीचन्दजी आ गये हैं। मैं इनको, थोड़े में, आपका केस समझा दूँगा । इनसे अच्छा आपको काम करने वाला नहीं मिलेगा। बाबू धनीचन्द से अँग्रेजी में कहा, "भई धनीचन्द, जरा इनका काम सँभाल देना। मैं कुछ नहीं कर सकूँगा ।" धनीचन्द ने पूछा, "क्या बात है ?"
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विनोद ने कहा, " बात क्या कुछ नहीं । सिर में दर्द है ।" इतना कहकर गत समुदाय के केसों की एक-एक फ़ाइल लेकर धनीचन्द को हर एक के बारे में दो-दो बातें कह दीं।
कहना न होगा कि धनीचन्द इन केसों को लेकर प्रसन्न नहीं हैं । विनोद बेगार - प्रथा का विरोधी है; और धनीचन्द खाली रहने इतने डरते हैं कि बेगार को भी ग़नीमत मानें ।
समझ-समझाकर धनीचन्द ने कहा, "मैं सब ठीक कर दूँगा ।" मवक्किल सम्प्रदाय की ओर मुड़कर दोबारा कहा, “मैं सब ठीक कर दूँगा । आप फ़िकर न करें, मैं सब बिलकुल ठीक कर दूँगा ।"
इस दो-तीन बार के आश्वासन दिये जाने ने आश्वासन का हो जाना और कठिन बना दिया । धनीचन्द की व्यम्रता ने मवक्किलों को पूर्ण रूप से आश्वस्त नहीं होने दिया है— विनोद ने यह देखा । कहा, "आप लोग बेफिक्र होकर अब जा सकते हैं।"
धनीचन्द ने भी देखा कि उनके भीतर की सन्देहवृत्ति जो अत्यधिक आत्मविश्वास की भीख माँगती हुई प्रकट हो रही है, वह गड़बड़ ही उपस्थित कर रही है, विश्वास की जगह सन्देह को ही उपजाती है। उसी समय विनोद सामने आकर, निश्चित बात कह