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चोर
घर में आठ बरस का प्रद्युम्न बड़ा ऊधमी है । किसी की नहीं सुनता और जिद पर आजाय, तो पूछिए ही क्या । इधर कुछ दिनों से वह कुछ गुमसुम रहता है । ऊधम-दंगा भी कम हो गया है । जाने क्या बात उस के मन में बैठ गई है । शाम को स्कूल से आता है, तो दौड़ कर खेलने बाहर नहीं चला जाता, इस-उस कमरे में ही दिखाई देता है । मैं परेशान हूँ। कहती हूँ, “क्या हुआ है प्रद्युम्न ?" तो सिर हिलाकर कह देता है, "कुछ भी नहीं।" __"तो खेलने क्यों नहीं गया ?"
“यों ही नहीं गया।" __ मैं समझती हूँ कि रूठा है । तब गोद में लेकर प्यार करती हूँ। पर वह बात भी नहीं है । अब सबकी अपनी-अपनी जगह शोभा है । बालक में बुद्धिमानी अच्छी नहीं लगती। उसमें बचपन चाहिए । पर प्रद्युम्न जो आठ वर्ष की उम्र में बुजुर्ग बन रहा है, सो मैं कैसे देखती रह जाऊँ ? डपट कर कहा, “जाता क्यों नहीं खेलने ? साथी बच्चों में मन ही बहलेगा।"
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