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जैनेन्द्र का जोवन-दर्शन
रस ग्रहण करता है, क्योकि पीडा मे ही प्रेम ओर 'पर' के पति महानुभूति का भाव समाहित होता है । पात्याणी', 'अनन्तर', 'जयवर्धन' आदि गभी उपन्यासो मे ईसा का यादश प्रस्तुत किया गया है । वस्तुत यदि जोवन है तो यह गघर्ष हीन हो नही माता । जेनेन्द्र के अनुसार जीवन एक कठोर सत्य है। वह इतना सरल पोर गुखमय नही है, जितना बा त्याकपण क कारण पतीत होता है।' त्यक्ति जीवन में संघर्ष करने की इच्छा लेकर मघप-रत नही रहता। सघष की शक्ति प्रेम मे से ही उत्पत्र होती है। यही कारण है कि जैनेन्द्र जीवन मे सहने को ही वम मानते है। भघर्ष करना जीवन का मार नही, वरन् जोयन की अनिवार्य प्रक्रिया है । जैनेन्द्र के अनुमार जीवन का सार-तत्व प्रेम है। प्रेम के वशीभूत होकर व्यक्ति मे अपने को 'पर' से गद्भूत शक्ति उद्भुत होती है। जैनेन्द्र के उपन्यास प्रोर कहानियो मे जीवनगत सघप का जो रूप दृष्टिगत होता है, वह अन्तस् की व्यथा के कारण ही मतत् गतिशीत रहता है। 'कल्याणी' और 'मणात' ऐसी नारिया है, जो प्रेम के तू जीवन मे जूझती रहती है, किन्तु परिस्थिति में पराजित होकर वे पी नही हटती । जीवनयाना पूरा करती है। उन्हे अनेो काट गहने पा, किन्ला वह पराजित नही होती।
अनेन्द्र के अनूगार जीवन की साथकता उससे निपटे रहन गही नही है। शहीद ही जिन्दगी के स्वाद को समझ सकता है, जो गहुए प्राणो की प्राहुति दे देता है। जीवन के लिप्त रहने में मौत का भय न्यक्ति की प्रगति को अवगत कर देता है, क्योकि उसके मन में मदैव यही काटा चुभता रहता है कि कही मौत उसके जीवन के सुख को पल भर में समाप्त कर दे। जैनेन्द्र की कहानियो और उपन्यासो मे एसी अनेका घटना भाटगत होती हे, जब उनका पात्र स्वेच्छा से मृत्यु का आलिगन करके अपने जीवन को गफा बनाते है । 'फासी' मे शमशेर अपनी मात द्वारा जीवन को अर्थवत्ता प्रदान करता है । वह मौत को बडी चीज नही मानता, किन्तु जीवन के लिए कभीकभी मृत्यु का ग्रालिगन श्रेयष्कर होता है। जैनेन्द्र मोत मे जीवन की यात्रा को समाप्त हुया नही पाते, क्योकि जीवन तो अनन्त यात्रा हे ।
जैनेन्द्र का जीवन-यादर्श नितान्त व्यावहारिक प्रतीत होता है। समार
१. 'जीवन निरी मुलायम चीज नही है । वह युद्ध है। जब तक व्यक्ति है तब तक युद्ध है । वहा कोई समझोता नही है और कोई अन्त नही है।'
- प्रभाकर माचवे 'जैनेन्द्र के विचार', पृ० ६६ । २ जैनेन्द्र कुमार 'विवर्त', प्र० स० दिल्ली, १६५३, पृ० १२६ ।