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जैनेन्द्र का जोवन-दरान
ठानी
है ।
मे हो निहित रहती है । जैनेन्द्र के पामे नग्नता शरीर के सोन् गित करने के लिए न होकर सम्पूर्ण समर्पण के रूप मे लेक हुई हे । 'विकता का मानद उतना सकीरण नही है, साि विवादशवादी देखो से दृष्टिगोचर होता है । 'एक रात' 'सुनीता' उपन्यास में उनकी समर्पण भावना सी महत भाव से जेवेन्द्र के इतिहास पे विवाह र प्रेम की समस्या भी पर्याक विस्फोटक " मे व्यक्त हुई है | जेवेन्द्र ने विवाह को सामाजिक व्यवस्था कवि अनिवार्य म स्वीकार किया है । प्रेम-विवाह उनकी दृष्टि में गति पफ सिद्ध होता है । प्रेम मे दायित्व प्रथवा विवाह की बान्यता ही ा है। पत्नी रमाथ-साथ नदी के दो किनारो के चवना स्वाभाविक है। उनके गनुसार- 'पत्नी को काम्य शो यदि गाना स्वीर तो किसी-न-किसी तोर मार्ग से आ ही जाना है।' नेम के
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भार विवाह केवल मगार में प्रवेश का द्वार है, उसे
लापर
मानक
1
व्यक्ति के प्राकृतिक प्रवाह में गवरोध उत्पन्न हो जाता है जिसम समे उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है । यही कारण है कि तर पम को सामाजिक दृष्टि मनुचित नही रागयत । sot आदि समाज की सीमा मे नही कर सम गुप्त काव हे पीलिए उसम सामाजिक मर्यादा का प्रश्न ही नहीं उठता। सन जिजान ने गी भ्रम में पारस्परिक स्वतन्त्रता को प्रनिवाय गाना है | ग तुपित हो जाता है । पैनेन्द्र खली तहत धिक प्रभावित है उनकी जीवन, जगत
जिज्ञान के ि कम सम्बनी
पर
"
३
१ रुमने
को सानो में बाट दिया है और शरीर जहा स्थित हा
न
पति र प्रनुपस्थित है वहा पविता की भावना को बिठा दिया है । म जानता कि जो यधूरा हे वह तृष्णा हे ।'
-- जैनेन्द्र कुमार 'काम, प्रेम और परिवार', दिल्ली, १९६१ प्र० स०
पृ० ३३ ।
जनेन्द्र कुमार
१० २६ ।
जैनेन्द्र कुमार
४
1
तणा
काम,
प्रेम और परिवार', दिल्ली, १९६१, प्र० स०
'काम, प्रेम और परिवार', दिल्लो १६५१, प्र० ग
५० ११० ।
सन्त खलील जिब्रान 'जीवन-दर्शन' (दि प्रोफेट का अनुवाद) अनु सत्यकाम विद्यालकार, दिल्ली, सशोधित स०, १६५८, पृ० १६ ।