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________________ जैनेन्द्र और समाज २०५ के लिए धनोपार्जन करती है। वह अपने हाथो से अपने पति की आखे फोड देती है, जिससे वह उसके कुकर्मो को देखकर दुखी न हो । उसकी आत्मा पतित नही होती । किन्तु बाह्य रूप मे वह जो कुछ भी करती है, किसी तरह ही सहन करती है । जैनेन्द्र ने अपनी इस कहानी मे वेश्या नारी का जो रूप प्रस्तुत किया है, वह मर्मातिमर्म को छू लेता है । वस्तुत जैनेन्द्र की दृष्टि मे वैश्या समाज-उपेक्षिता बनकर भी सहानुभूति की प्रार्थिनी बनी रहती है । 'बिखरी' कहानी मे पत्नी निर्धनता के कारण स्वय को ऐसी सस्था से सम्बद्ध कर देती है, जिसका लक्ष्य उसके माध्यम से अर्थोपार्जन करना है। 'त्यागपत्र' मे मृणाल सामाजिक मर्यादा की सुरक्षा के हेतु स्वय को समाज के उस उपेक्षित स्थान मे ले जाती है, जहा मानव जीवन की समस्त सवेदना तथा पारस्परिक सहानुभूति पूर्णत समाप्त हो जाती है। नारी केवल जडपदार्थ के रूप मे उपभोग्य बन जाती है । 'त्यागपत्र' मे मृणाल निर्धनता के कारण भी समाज के उस दलित स्थल को स्वीकार नही करती, वरन् स्वय को समाज से दूर रखकर समाज की व्यवस्था को स्थायित्व प्रदान करती है । वस्तुत जैनेन्द्र के उपन्यास और कहानियो मे नारी अधिकाशत अर्थासक्ति के कारण ही वेश्यावृत्ति स्वीकार करती है । जैनेन्द्र अतत वेश्यावृत्ति के उन्मूलन का कोई निदान प्रस्तुत करने में समर्थ नही हो सकेगे । 'त्यागपत्र' की समस्या इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है । वस्तुत जैनेन्द्र सुधार के पक्ष मे नही प्रतीत होते । उनकी दृष्टि मे सामाजिक-सुधार के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति की मनोवृत्ति मे सुधार किया जाय । समाज में स्त्री का स्थान जैनेन्द्र के साहित्य मे जहा स्त्री-पुरुष को उनके प्रकृत अर्थात् निर्वयक्तिक रूप मे स्वीकार किया गया है, वहा जैनेन्द्र के विचारो की मौलिकता तथा नवीनता स्पष्टत. दृष्टिगत होती है। किन्तु नारी को व्यक्तित्व प्रदान करते हुए उन्होने उसके स्वरूप को राजनीति, समाज, परिवार आदि विभिन्न परिप्रेक्ष्यो मे विभिन्न रूपो मे देखा है। जैनेन्द्र के साहित्य का अध्ययन करने पर यह विदित होता है कि उनके नारी पात्र अत्यन्त स्वतन्त्र विचारो के है । उनमे भारतीय संस्कृति और मर्यादा की चेतना नही है, किन्तु सत्यता यह है कि जैनेन्द्र के पात्र भूत का स्पर्श करते हुए भी वर्तमान मे जीते है। अपनी संस्कृति की वे कभी भी उपेक्षा नही करते । भौतिकता के युग मे सामान्यत स्त्री-पुरुष मे होड लगी हुई है । स्त्री पुरुष से आगे बढ़ने के लिए तत्पर है किन्तु जैनेन्द्र के अनुसार स्त्री की पुरुष से
SR No.010353
Book TitleJainendra ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusum Kakkad
PublisherPurvodaya Prakashan
Publication Year1975
Total Pages327
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size43 MB
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