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जैनेन्द्र ओर धम
प्रमाणित करने के लिए बहुत ही उपयुक्त है। उसमे लेखक ने एक ओर पूर्ण अहिसक अर्थात् जैनी की 'स्व पर' मूलक करुणा की ओर इगित किया है तो दूसरी ओर आस्तिकता प्रधान अद्वैतमूलक सत्य की ओर सकेत किया है। अन्त मे अद्वैतवादी व्यक्ति आस्तिक होते हुए भी 'घोडी' की जीवनमुक्ति मे धर्म की झलक देखता हुआ उसे अपनी गोली का शिकार बना लेता है। घोडी के मालिक प्रोवरमियर के हृदय मे अपनी पुरानी घोडी के लिए घर के प्रात्मीय सम्बन्धियो के सदृश्य ही अपार प्रेम है । वे उसके कष्ट को देखकर बहुत दुखी रहते है किन्तु दूसरे अग्रेज सज्जन के हृदय मे भी दया कम नही है । किन्तु उनकी दया घोडी को मरता हुआ नही रहने देना चाहती ।' इस प्रकार उपरोक्त घटना द्वारा गाधी की अहिसा और जैन दर्शन की अहिसा का अन्तर स्पष्ट हो जाता है । जैनेन्द्र पर गाधी की ही अहिसा का प्रभाव लक्षित होता है। जैनेन्द्र ने भी कर्म से अधिक भावना पर बल दिया है। उनकी दृष्टि मे 'स्व-पर' भिन्न नही है। इसलिए 'पर' की दु ख से मुक्ति अनिवार्य है।
जैनेन्द्र-साहित्य मे अहिसा विविध सन्दर्भो मे दृष्टिगत होती है। उन्होने अपने उपन्यास के पात्रो के चित्रण मे अपनी पूर्ण अहिसक नीति का ही परिचय दिया है । वे किसी के हृदय के प्रेम को चोट नही पहुचाना चाहते। उनके पात्र स्वय तिल-तिल कर मर जाते है किन्तु अपने कारण किसी को कष्ट नही देते। 'परख' मे कट्टो तथा 'त्यागपत्र' की मृणाल उनके ऐसे ही पात्र है. जिनका जीवन कष्ट भेलने मे ही बीतता है । 'परख' अपने प्रेमी पात्र की प्रसन्नता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है। वह नही वाहती कि उसके कारण उसके प्रेमी की कष्ट हो । 'त्यागपत्र' मे मृणाल का जीवन व्यथा से पूर्ण है। किन्तु अपनी व्यथा को वह बाटना नही चाहती । वह नहीं चाहती कि उसके कारण उसका भतीजा कष्ट पाये । इन दोनो उपन्यासो मे जैनेन्द्र ने निज की व्यथा को सहने में ही अपनी अहिसक नीति का परिचय दिया है । 'सुखदा', 'विवर्त' मे भी जैनेन्द्र ने सुखदा और भुवन मोहिनी के पति को उनके प्यार की रक्षा के हेतु कष्ट सहते हुए दिखाया है, किन्तु उपरोक्त उपन्यासो मे इन उपन्यासो की स्थिति मे अन्तर है । उनके त्याग की चरम सीमा थी, त्याग सहर्प था, किन्तु इन उपन्यासो मे पुरुष पात्रो की दुर्बलता का ही परिचय मिलता है। यदि यह कहा जाय कि वे अपनी अहिसक नीति के कारण पत्नी के मार्ग में बाधा नही उत्पन्न करते तो उचित नही प्रतीत होगा । 'सुखदा' और 'विवर्त' के पुरुष पात्र बहुत कायर से प्रतीत होते है । अहिसा साहस मे है, विवशता मे नही ।
१ जैनेन्द्रकुमार जैनेन्द्र 'प्रतिनिधि कहानिया', पृ० ८५ ।