________________
विजय
जिन्होने साधु के कठोर व्रतों का पालन करते हुए भी लोक
सेवा के बहुत से काम किये और धर्म के मूल तत्त्वों को मानवजीवन मे प्रतिष्ठित करने के लिए सतत प्रयास किया, उन स्व० जैनाचार्य श्री विजयवल्लभ सूरी
की पावन स्मृति मे
SR No.
010350
Book Title
Jain Dharm ka Pran
Original Sutra Author
N/A
Author
Sukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania, Ratilal D Desai