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जैनधर्म का प्राण
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है ? इत्यादि सख्यातीत प्रश्न, जो कर्म से सबन्ध रखते है, उनका सयुक्तिक, विस्तृत व विशद खुलासा जैन कर्मसाहित्य के सिवाय अन्य किसी भी दर्शन साहित्य से नही किया जा सकता। यही कर्मतत्त्व के विषय मे जैनदर्शन की विशेषता है ।
(द० औ० चि० ख०२ पृ० २०५-२१६, २२३-२२९, २३५-२३८)