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जैनधर्म का प्राण
दे विविध पशुओं का आर्त्तनाद सुनकर नेमिकुमार ने ठीक लग्न के मौके ही करुणार्द्र होकर अपने ऐसे लग्न का सकल्प ही छोड दिया, जिसमे ओका वध करके मॉस का खाना खिलाना प्रतिष्ठित माना जाता रहा । मकुमार के इस करुणामूलक ब्रह्मचर्यवास का उस समय समाज पर ऐसा
पड़ा और क्रमश वह असर बढता गया कि धीरे-धीरे अनेक जातियों सामाजिक समारभो मे मॉस खाने खिलाने की प्रथा को ही तिलाञ्जलि दी। सभवत यही ऐसी पहली घटना है जो सामाजिक व्यवहारो मे हिसा की नीव पडने की सूचक है । नेमिकुमार यादव - शिरोमणि देवकीदन कृष्ण के अनुज थे । जान पडता है कि इस कारण से द्वारका और थुरा के यादवो पर अच्छा असर पडा ।
पार्श्वनाथ का हिंसाविरोध
इतिहास - काल मे भगवान पार्श्वनाथ का स्थान है । उनकी जीवनी कह रही है कि उन्होने अहिंसा की भावना को विकसित करने के लिए एक दूसरा ही कदम उठाया । पञ्चाग्नि जैसी तामस तपस्याओ मे सूक्ष्म-स्थूल
यो का विचार बिना किए ही आग जलाने की प्रथा थी, जिससे कभीकभी ईधन के साथ अन्य प्राणी भी जल जाते थे । काशीराज अश्वपति पुत्र पार्श्वनाथ ने ऐसी हिसाजनक तपस्या का घोर विरोध किया और धर्मक्षेत्र मे अविवेक से होने वाली हिसा के त्याग की ओर लोकमत तैयार किया ।
भगवान महावीर के द्वारा की गई अहिंसा की प्रतिष्ठा
पार्श्वनाथ के द्वारा पुष्ट की गई अहिसा की भावना निर्ग्रन्थनाथ ज्ञातपुत्र महावीर को विरासत मे मिली । उन्होने यज्ञ-यागादि जैसे धर्म के जुदे-जुदे क्षेत्रो मे होनेवाली हिसा का तथागत बुद्ध की तरह आत्यन्तिक विरोध किया और धर्म के प्रदेश मे अहिसा की इतनी अधिक प्रतिष्ठा की कि इसके बाद तो अहिंसा ही भारतीय धर्मो का प्राण बन गई। भगवान महावीर की उम्र अहिंसापरायण जीवन-यात्रा तथा एकाग्र तपस्या ने तत्कालीन अनेक प्रभावशाली ब्राह्मण व क्षत्रियो को अहिंसा - भावना की