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________________ ( १०३ ) कोशिश न करते हो ? किसी प्रान्त में या शहर में जाँच करनी जाय तो मालूम होगा कि चालीस पैतालिस वर्ष से कम उमर में विधुर होकर थपने पुनर्विवाह की कोशिश न करने वाले विधुर फीसदी पाँच से भी कम हैं। जहाँ पर विधुरविवाह के समान विधवाविवाह का भी पूर्ण प्रचार है वहाँ की रिपोर्ट से भी इस बात का समर्थन होगा। क्या ऐसी स्पष्ट जाँच की वृष्टता कहते हैं ? इस वक्तव्य से विद्यानन्दजी के श्रापों का भी उत्तर हो जाता है। हाँ ! उनके बहुत से श्राक्षेप प्रकरण के बाहर होगये है, परन्तु उनका भी उत्तर दिया जाता है जिसमे कहने की भी गुंजाइश न रह जाये । श्राक्षेप ( ख ) - क्या मध्य में मोक्ष जाने की नाकृत नहीं है ? तानावरण का सद्भाव कैम घटिन होगा ? राजचार्तिक देखिये ! (विद्यानन्द) --- समाधान - श्रक्षेपक ने गजवार्तिक गौर से नहीं देखा। गजवानिक में लिखा है कि द्रव्यार्थिनय से तो अभव्य मैं aante की शक्ति है, परन्तु पर्यायार्थिकनय से नहीं है | इसलिये व्यार्थिकनय से तो स्त्रियों में वैधव्य पालन श्री तो क्या, ज्ञानादिक श्री भी शक्ति कहलायी । ऐसी हालन मैं तो प्रश्न की कार्ड ज़रूरत ही नहीं रहती । और जब प्रश्न किया गया है तो सिद्ध है कि पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा है, और उस नय से श्रमव्य में मुक्तियोग्यता नहीं है । जरा राजवार्तिक के इस वाक्य पर भी विचार के जिये - "सम्यक्वादिपर्यायव्यक्तियोगाहों यः स भव्यः तद्विपरीतोऽव्यः" श्रर्थात् जिसमें सम्यक्त्वादि की प्रगट करने की योग्यता हो उसे भव्य कहते हैं उससे विपरीत को श्रमव्य । मतलब यह है कि करने की शक्ति अशक्ति की अपेक्षा से भव्य श्रम
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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