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(१०४) व्य का भेद है। हमने मोक्ष जाने तक की बात कही है, शक्ति रूप में मौजूद रहने की नहीं। खैर, यहाँ इस चर्चा में कुछ मतलब नहीं है। अगर आक्षेपक को इस विषय की विशेषता का अमिमान है तो वे स्वतन्त्र चर्चा करें। हम उनका समा. धान कर देंगे।
आक्षेप (ग)-आजकल मी स्त्रीजानि को पचम गुण स्थान हो सकता है और पुरुषों को सप्तम गुणस्थान । इसलिये अवस्था का बहाना बनाना अधमना सं भी अधम है।
समाधान-गुणस्थानों की चर्चा उठाकर आक्षेपक ने अपने पैरों पर आप ही कुल्हाडी मारी है । क्या प्रानपक ने विचार किया है कि मनुष्यों में पञ्चम गुणस्थान के मनुष्य कितने है ? कुल मनुष्य २६ अङ्क प्रमाण है और पञ्चम गुण. स्थानवाले मनुष्यों की संख्या ६ अङ्कप्रमाण । वीस अङ्क ज्यादा है । १६ अङ्क के दम सह होते हैं बीस अङ्कक १०० सल हुए। अर्थात् पॉचवे गुणस्थान के मनुष्यों से कुल मनुष्य सी सह गुणे है । सौ सह मनुष्यों में एक मनुष्य पञ्चम गुणस्थानवर्ती है । इस चर्चा से तो सौ में पाँच तो क्या एक या आधा भी नहीं बैठता ! फिर समझ में नहीं आता कि पॉत्र गुणस्थान में जीव होने से दुराचारियों का निषेध कैसे हो गया ? अनन्त सिद्धों के होने पर भी उनसे अनन्तगुणे ससारी है। असंख्य सम्यग्दृष्टियों के होने पर भी अनन्तानन्त मिथ्यादृष्टि हे । इसलिये पाँच सदाचारिणी स्त्रियों के होने से क्या ६५ दुग. चारिणी नहीं हो सकती १. फिर हमने ता वृद्धाओं को अलग रक्खा है और युवती विधवाओं में भी ६५ को दुराचारिणी नहीं, किन्तु पूर्ण वैधव्य न पालने वाली बतलाया है।
सीताराजुल आदि सतियों के दृष्टान्त से आक्षेपक की नहीं, किन्तु हमारी बात सिद्ध होती है । सतीत्व के गीत गाने