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________________ ( १०२ ) आँसुओं में से वैराग्य का दोहन बहुत अच्छा होता है । यह वैराग्य न मालूम कैसा अडियल टट्टू है कि श्राता ही नहीं है ! इधर जैनसमाज में मुफ्तखोरों की इतनी कमी है और जैन समाज के पास इतना धन है कि सूझना ही नहीं कि किसे खिलायें या कैसे खर्च करें ! सातवाँ प्रश्न इसमें पूछा गया था कि श्राजकल कितनी विधवाए पूर्ण पवित्रता के साथ वैधव्यव्रत पालन कर सकती हैं । इसका उत्तर हमने दिया था कि वृद्धविधवाओं को छोडकर बाकी विधवाओं में से फी सदी पाँच । यहाँ पूर्ण पवित्रता के साथ वैधव्य पालने की बात है । रो धोकर वेराग्य पालन करने वाली तो श्राधी या आधी से भी कुछ ज्यादा निकल सकती है । श्रक्षेपकों ने उत्तर का मतलब न समझकर वकवाद शुरु कर दिया। श्रीलाल जी हमसे पूछते हैं कि : आक्षेपक - श्राप को व्यभिचारिणियों का ज्ञान कहाँ से हुआ ? क्या व्यभिचारियों का कोई अड्डा है जो ख़बर देता है या गवर्नमेण्ट रिपोर्ट निकलती है ? समाधान - मालूम होता है श्रक्षेपक भूगर्भ में से विलकुल ताज़े निकले हैं । अन्यथा आप किसी भी शहर के किसी भी मोहल्ले में चले जाइये और जरा भी गौर से जाँच कीजिये, आपकी बुद्धि आपको रिपोर्ट देदेगी। इस रिपोर्ट की जॉच का हमने एक अच्छा तरीका बतलाया था-विधुरों की जॉच । स्त्रियों में काम की अधिकता बतलाई जाती है । अगर हम समानता ही मानले तो विधुरों की कमजोरियों से हम विध वाओं की कमज़ोरियों का ठीक अनुमान कर सकते हैं । वृद्ध विधुरों को छोडकर ऐसे कितने विधुर है जो पुनर्विवाह की J
SR No.010349
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year1931
Total Pages247
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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