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जैनधर्म
सन् ९७४ के लगभग तैलप द्वितीयने इस वंशका पुनरुद्धार करके कल्याणीको अपनी राजधानी बनाया । यह तैलप द्वितीय महान कन्नड़ जैन कवि रन्नका : आश्रयदाता था । यह धारानरेश मुंज और भोजका समकालीन था । इसके हाथसे ही मुंजकी मृत्यु हुई थी। इसके पुत्र और उत्तराधिकारी सत्याश्रय इरिववेडेंगके जैन गुरु द्रविड़संघ कुन्दकुन्दान्वयके विमलचन्द्र पण्डितदेव थे । इसने ९९७ ई० से १००९ ई० तक राज्य किया ।
तैलप द्वितीयका पौत्र तथा सत्याश्रयका भतीजा जयसिंह तृतीय था । यह नरेश अनेक जैन विद्वानोंका आश्रयदाता था । इसके समय के प्रमुख जैन विद्वान थे वादिराज, दयापाल एवं पुष्पषेण सिद्धान्तदेव । वादिराजकी एक उपाधि जगदेकमल्लवादी थी । यह उपाधि जयसिंह तृतीयने अपने दरबार में उन्हें ही थी ।
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इस राजाका पुत्र एवं उत्तराधिकारी सोमेश्वर प्रथम था । इसकी उपाधियां आहवमल्ल और त्रैलोक्यमल्ल थीं। इसने १०४२ ई० से १०६८ ई० तक राज्य किया । इसकी रानी केतलदेवीके अधीन चांकिराजने त्रिभुवनतिलक जिनालय में तीन वेदियां बनवाई। इस राजाने अजितसेन भट्टारकको शब्दचतुर्मुखकी उपाधि दी थी । अजितसेन भट्टारककी अन्य उपाधियां वादीभसिंह और तर्किक चक्रवर्ती थीं ।
इस राजाके ज्येष्ठपुत्र सोमेश्वर द्वितीयने भो जैनधर्मका संरक्षण किया था । इसने सन् २०७४ में शान्तिनाथ मन्दिरके लिये मूलसंघान्वय तथा काणूरगणके कुलचन्द्रदेवको भूमिदान किया था ।
सोमेश्वर द्वितीयके भाई विक्रमादित्य पष्ठने सन् १०७६ से ११२६ तक राज्य किया । यह बड़ा प्रतापी राजा था । इसीको लेकर कवि विल्डने विक्रमाङ्कदेव चरित काव्य लिखा है, इसकी एक उपाधि गंगपेमनडि थी क्योंकि उसकी मां गंगवंशकी राजकुमारी थी। उसने चालुक्य गंगपेर्मानडि चैत्यालय बनवाया