________________
इतिहास
पश्चिमी चालुक्य
इस वंशका सबसे प्राचीन दानपत्र शक सं० ४११ (४८९ ई० ) का आड़ते से मिला है । यह सत्याश्रय पुलकेशीका है । उसके अनुसार राजा पुलकेशीने चोल, चेर, केरल, सिंहल और कलिंगके राजाओंको अपना करढ़ बना लिया था । तथा पाण्ड्य आदि राजाओंको दण्डित किया था । लेखका मुख्य उद्देश्य यह है कि राजा पुलकेशीके शासनकालमें सेन्द्रकवंशी सामन्त सामियारने अलक्तक नगरमें एक जैन मन्दिर बनवाया था, और राजाज्ञा लेकर चन्द्र ग्रहण के समय कुछ जमीन और गांव दान में दिये थे ।
५९
पुलकेशी प्रथमका उत्तराधिकारी उसका पुत्र कीर्तिवर्मा था । उसने कुछ सरदारोंके निवेदन पर जिन मन्दिरकी पूजाके लिये कुछ भूमिदान दी थी । कीर्तिवर्मा प्रथमका पुत्र पुलकेशी द्वितीय हुआ । उसके कालका एक प्रसिद्ध लेख एहोलेसे प्राप्त हुआ है उसे जैन कवि रविकीर्तिने रचा है । भारतवर्षका तत्कालीन राजनीतिक इतिहास जाननेके लिये यह लेख बड़े महत्त्व - का है । लेखके अनुसार पुलकेशी उत्तरभारतके सम्राट हर्षवर्द्धनका समकालीन था । उसने दक्षिणकी ओर बढ़ते हुए हर्षवर्द्धनका हर्ष विगलित कर दिया था। रविकीर्ति पुलकेशीका आश्रित था और उसने शक सं० ५५६ में एक जैनमन्दिर बनवाया था ।
इसी वंशके विक्रमादित्य द्वितीय ने पुलिगेरे नगर में धवल जिनालयकी मरम्मत तथा सजावट कराई थी । तथा मूलसंघ देवगणके विजयदेव पण्डिताचार्य के लिये जिनपूजा प्रबन्धके हेतु भूमिदान दिया था ।
विक्रमादित्य द्वितीयके बाद चालुक्यवंशके बुरे दिन आये । गंग और राष्ट्रकूट राजाओंने उसका साम्राज्य नष्ट भ्रष्ट कर डाला । लगभग २०० वर्षों तक यह फिर पनप न सका । इस कालमें उसका स्थान राष्ट्रकूट वंशको मिला ।