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________________ जैनधर्म इसका नामकरण किया गया था। यह कनड़ीके प्रसिद्ध कवि रनके आश्रयदाता भी थे। गंगराज परिवारकी महिलाएं भी अपनी धर्मशीलताके लिये प्रसिद्ध हैं। एक प्रशस्तिमें गंग महादेवीको 'जिनेन्द्रके चरण कमलोंमें लुब्ध भ्रमरी' कहा है। यह महिलाभुजबल गंग हेम्माडि मान्धाता भूपकी पत्नी थी। राजा मारसिंहकी छोटी बहनका नाम मुग्गिपव्वरसि था। यह जैन मुनियोंकी बड़ी भक्त थी और उन्हें सदा आहार दान किया करती थी। जब चोल राजाने ई०म० १००४ में गंगनरेशकी राजधानी तलकादको जीत लिया, तबसे इस वंशका प्रताप मंद हो गया। बादको भी इस वंशके राजाओंने राज तो किया, किन्तु फिर वे उठ नहीं सके । इससे जैनधर्मको भी क्षति पहुंची। २. होयसल वंश इस वंशकी उन्नतिमें भी एक जैनमुनिका हाथ था। इस वंशका पूर्वज राजा सल था । एक बार यह राजा अपनी कुलदेवीके मन्दिरमें सुदत्तनामके जैन साधुसे विद्या ग्रहण करता था । अचानक वनमेंसे निकलकर एक बाघ सलपर टूट पड़ा। साधुने एक दण्ड सलको देकर कहा-'पोप सल' (मार सल)। सलने वाघको मार डाला । इस घटनाको स्मरण रखनेके लिये उसने अपना नाम 'पोपसल' रखा, पीछेसे यही 'होयसल' हो गया। . गंगवंशकी तरह इस वंशके राजा भी विट्टिदेव तक बराबर जैनधर्मी रहे और उन्होंने जैनधर्मके लिये बहुत कुछ किया । 'दीवान बहादुर कृष्ण स्वामी आयंगरने विष्णु वर्द्धन विट्टिदेवके समयमें मैसूर राज्यकी धार्मिक स्थिति बतलाते हुए लिखा है-'उस समय मैसूर प्रायः जैन था। गंग राजा जैनधर्मके १. Ancient India P. 738-739.
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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