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जैनधर्म बड़े भागपर ईसाकी दूसरी शताब्दीसे लेकर ग्यारहवीं शताब्दी तक राज्य किया। उसके पश्चान वे चोलोंके द्वारा पराजित हुए। किन्तु चोल लम्बे समय तक राज नहीं कर सके और शीघ्र ही होयसलोंके द्वारा निकाल बाहर किये गये । होयसलोंने एक पृथक राजवंश स्थापित किया जो ११वीं शती तक कायम रहा।
प्राचीन चालुक्योंने छठी शतीके लगभग अपना राज्य स्थापित किया और प्रबल शासनके पश्चात दो भागोंमें बँट गये-एक पूर्वीय चालुक्य और दूसरा पश्चिमीय चालुक्य । पूवीय चालुक्योंने ७५० ई० से ११ वीं शती तक राज्य किया। उसके पश्चात् उनके राज्य चोलोंके द्वारा मिला लिये गये। पश्चिमीय चालुक्य ७५० ई० के लगभग राष्ट्रकूटोंसे पराजित हुए।
राष्ट्रकूटोंने ९७३ ई० नक अपनी: स्वतंत्रता कायम रखी। उसके पश्चात् वे पश्चिमीय चालुक्योंसे पराजित हुए । चालुक्योंने लगभग दो सौ वर्ष तक राज्य किया। उसके पश्चात् कालाचूरियोंसे वे पराजित हुए। कालाचूरियोंने तीस वर्ष राज्य किया। अब प्रत्येक राजांशके समयमें जैनधर्मकी स्थितिका दिग्दर्शन कराया जाता है।
१. गंगवंश इस वंशकी स्थापना ईसाकी दूसरी शतीमें जैनाचार्य सिंहनन्दिने की थी। इसका प्रथम राजा माधव था, जिसे कोंगणी वर्मा कहते हैं । मुष्कार अथवा मुखारके समयमें जैनधर्म राजधर्म बन गया था। तीसरे और चौथे राजाओंको छोड़कर उसके शेष पूर्वज निश्चय से जैनधर्मके सहायक थे। माधवका उत्तराधिकारी अवनीत जैन था । अवनीतका उत्तराधिकारी दुर्विनीत प्रसिद्ध वैयाकरण जैनाचार्य पूज्यपादका शिष्य था।
ईसाकी चौथीसे बारहवीं शताब्दी तकके अनेक शिखालेखोंसे यह बात प्रमाणित है कि गंगवंशके शासकोंने जैनमन्दिरोंका
१ 'स्टोज इन साउथ इन्डियन जैनिज्म' पृ० १०७ ।