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इतिहास इतनी बड़ी सफलता प्राप्त करने में समर्थ हुए थे। इसका मुख्य कारण अन्य कुछ भी नहीं, केवल यह मंगलकारी राजनैतिक संयोग था।' __ हमारे मतसे जैनों और बौद्धोंकी सफलताका कारण केवल राजनैतिक संयोग नहीं था, किन्तु फिर भी वह एक प्रबल कारण अवश्य था । अस्तु ।
नन्दवंश
__ (ई० पू० ३०५) उदायीके बाद मगधके सिंहासनपर नन्दवंशका अधिकार हुआ। महाराजा खारवेलके शिलालेखसे पता चलता है कि महाराज नन्दने अपने राज्यकालमें कलिंग देशपर चढ़ाई की थी। और वह कलिंगके राजघरानेसे श्रीऋषभदेवकी प्रतिमा उठाकर ले गये थे। इस घटनाके ३०० वर्ष बाद कलिंगाधिपति खारवेलने जब मगधपर चढ़ाई करके उसे जीत लिया तो मगधाधिपति पुष्यमित्रने वह प्रतिमा खारवेलको लौटाकर उसे प्रसन्न कर लिया। एक पूज्य वस्तुका इस प्रकार ३०० वर्ष तक एक राजघरानेमें सुरक्षित रहना इस बातका साक्षी है कि नन्दवंशमें उसको पूजा होती थी। यदि ऐसा न होता और नन्दवंश जैनधर्मका विरोधी होता तो उक्त मूर्ति इस प्रकार सुरक्षित नहीं रहती। मुद्राराक्षस नाटकमें भी यह उल्लेख है कि चाणक्यने नन्द राजाके मंत्री राक्षसको विश्वास देकर फाँसनेके लिये अपने एक चर जीवसिद्धिको क्षपणक बनाकर भेजा था। और क्षपणकका अर्थ कोषग्रन्थोंमें नग्न जैन साधु पाया जाता है। अतः नन्दका मंत्री राक्षस जैन था और राजा नन्द भी सम्भवतः जैन था।
मौर्यसम्राट चन्द्रगुप्त
(ई० पू० ३२०) मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त जैन थे। इनके समयमें मगधमें १२ वर्षका भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा था। उस समय ये अपने पुत्रको राज्य सौंपकर अपने धर्मगुरु जैनाचार्य भद्रबाहुके साथ दक्षि