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विविध
३७७ मानते हैं कि मुक्त हुआ जीव वैकुण्ठमें अनादि कालतक सुख भोगता है अथवा ब्रह्ममें लीन हो जाता है। जैनी मानते हैं कि मुक्त जीव लोकके अप्रभागमें सदा काल विराजमान रहता है। जैनधर्म में धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, गुणस्थान, मार्गणा आदि अनेक तत्त्व ऐसे हैं जो हिन्दूधर्ममें नहीं हैं। तथा जैन न्यायमें भी स्याद्वाद, नय, निक्षेप आदि बहुतसे ऐसे तत्त्व हैं जो जैनेतर न्यायमें नहीं हैं। यह सब भेद होते हुए भी दोनों धर्मों के अनुयायियोंमें सांस्कृतिक दृष्टिसे आज एकरूपता दिखाई देती है और कुछ जातियाँ ऐसी हैं जिनमें दोनों धर्मों के अनुयायी पाये जाते हैं और उनमें परस्परमें रोटी-बेटी व्यवहार भी चालू है।
२. जैनधर्म और बौद्ध धर्म पहले अनेक विद्वानोंका यह मत था कि जैनधर्म बौद्धधर्मकी शाखा है। किन्तु स्व० याकोबीने इस भ्रमका परिमार्जन करते हुए स्पष्ट रीतिसे यह साबित कर दिया कि ये दोनों दो स्वतंत्र धर्म हैं, और इन दोनोंमें जो कुछ समानता है उसपरसे यह प्रमाणित नहीं होता कि एक धर्ममेंसे दूसरा धर्म निकला है।
दोनोंमें समानता __ जैनधर्म और बौद्धधर्ममें अनेक समानताएँ हैं। दोनों वेदको प्रमाण नहीं मानते। दोनों यज्ञहिंसाके विरोधी हैं। दोनों जगन्नियन्ता ईश्वरकी सत्ताकी नहीं मानते। दोनों पुरुषोंमें देवत्वकी स्थापना करके उसको पूजा करते हैं ? दोनोंके धर्मसंस्थापक 'अहंत और जिन' कहलाते हैं। दोनों अहिंसाके सिद्धान्तके अनुयायी हैं। दोनोंके संघमें साधु और साध्वीको महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इन समानताओंके सिवा महत्त्वकी समानता तो यह है कि महावीर और बुद्ध दोनों समकालीन