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________________ ३२४ जैनधर्म सिंह हुए। वागपुरके किलेमें त्रिभुवनवीरको मार डालनेपर बैरी-कुल-काल- दण्डकी उपाधि पाई। गंगभट्टको युद्ध में मारनेपर समरपरशुराम हुए। सत्यवादी होनेसे सत्य युधिष्ठिर कहे जाते थे । सेनापति गंगराज होय्सलवंश का प्रतापी नरेश विष्णुवर्द्धन था । उसकी अनेक विजयोंका श्रेय उसके आठ जैन सेनापतियोंको था । ये सेनापति थे- गंगराज, बोप्प, पुणिस, बलदेवण्ण, मरियाने, भरत, ऐच और विष्णु । इन सेनापतियोंके कारण ही होय्सल राज्य दक्षिण भारत की प्रधान शक्तियोंमें गिना गया । गंगराज - इन सेनापतियोंमें प्रधान था गंगराज | श्रवणबेलगोलाके शिलालेखोंमें गंगराजके प्रतापमय तथा धार्मिक कार्योंका वर्णन मिलता है। समधिगतपश्च महाशब्द, महासामन्ताधिपति, महाप्रचण्ड दण्ड नायक, वैरिभयदायक श्रीजैनधर्मामृताम्बुधि प्रवर्द्धन सुधाकर, सम्यक्त्व रत्नाकर, धर्महम्र्योद्धरणमूल स्तम्भ, विष्णुवर्द्धन भूपालहोय्सल महाराज्याभिषेक पूर्ण कुम्भ आदि उनकी उपाधियाँ थीं। इन्होंने कन्नेगालमें चालुक्यसेना को पराजित किया था। जब वे चालुक्योंको पराजित करके लौटे तब विष्णुवर्द्धनने प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगनेको कहा। उन्होंने परम नामक ग्राम मांगकर उसे अपनी माता तथा भार्या द्वारा निर्माण कराये जिन मन्दिरोंके लिये दान कर दिया । इसी प्रकार गोविन्दवाडी गाँव प्राप्त करके गोम्मटेश्वरको अर्पण कर दिया । उन्होंने तलकाडु, कोंङ्ग चेङ्गिरि आदि को स्वाधीन किया, नरसिंह को यमलोक भेजा, अदियम, तिमिल, दामोदरादि शत्रुओंको पराजित किया। इस तरह गंगराज जैसे पराक्रमी थे वैसे ही धर्मिष्ठ भी थे। उन्होंने गोम्मटेश्वर का परकोटा बनवाया, गङ्गवाडिके समस्त जिनमन्दिरोंका जीर्णोद्धार कराया, तथा अनेक स्थानों पर नवीन जिन मन्दिरोंका
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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