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________________ ३२० जैनधर्म उधर श्वेताम्बर' भी कहते हैं कि छठे स्थविर भद्रबाहुके समयमें अर्द्धस्फालक सम्प्रदायकी उत्पत्ति हुई । इनमेंसे ई०सं०८० में दिगम्बरोंका उद्भव हुआ जो मूलसंघ कहलाया। __ इससे भी इस सम्प्रदायका अस्तित्व सिद्ध होता है। अब रह जाता है यह प्रश्न कि अर्द्धस्फालक इवेताम्बरांके पूर्वज हैं या दिगम्बरोंके ? इसका समाधान भी मथुरासे प्राप्त पुरातत्त्वसे ही हो जाता है। वहाँके एक शिलापट्टमें भगवान महावीरके गर्भपरिवर्तनका दृश्य अंकित है और उसीके पास एक छोटीसी मूर्ति ऐसे दिगम्बर साधुकी है जिसकी कलाईपर खण्ड वस्त्र लटकता है। गर्भापहार श्वेताम्बर सम्प्रदायकी मान्यता है अतः स्पष्ट है कि उसके पास अंकित साधुका रूप भी उसो सम्प्रदायमान्य है। उपसंहार सारांश यह है कि मुख्यरूपसे जैनधर्म दिगम्बर और श्वेताम्बर इन दो शाखाओंमें विभाजित हुआ। पीछेसे प्रत्येकमें अनेक गच्छ, उपशाखा और उपसम्प्रदाय आदि उत्पन्न हुए । फिर भी सब महावीर भगवानकी सन्तान हैं और एक वीतराग देवके ही माननेवाले हैं। १. जैन संस्कृतिका प्राणस्थल, "विश्ववाणी' सितम्बर १९४२ ।
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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