________________
सामाजिक रूप
३०५ बलात्कारसे बुलाया था इसलिये बलात्कारगण और सरस्वतीगच्छ नाम प्रसिद्ध हुआ । १४ वीं शताब्दीके लेखोंसे इस गणका विशेष प्रभाव प्रकट होता है। एक लेखमें मृलसंघके साथ नन्दिसंघ, वलात्कारगण और सारस्वत गच्छका उल्लेख है। तथा इस गणके आदि आचार्य के रूपमें पद्मनन्दिका नाम लिखा है और उनके कुन्दकुन्द वक्रग्रीव, एलाचार्य गृद्धपिच्छ नाम दिये हैं।
काष्ठासघ ___ काष्ठासंघकी उत्पत्तिके मम्बन्धमें मतभेद है। दसवीं शताब्दीके दर्शनसार ग्रन्थमें आचार्य देवसेनने लिखा है कि दक्षिण प्रान्तमें आचार्य जिनसेनके मतीय विनयसेनके शिष्य कुमारसेनने काष्ठासंघकी स्थापनाकी थी इसने मयर पिच्छको छोड़कर गायके वालोंकी पीछी धारण की थी और समस्त बागड़ देशमें उन्मार्गका प्रसार किया था। वह त्रियोंको जिनदीक्षा देता था अल्लकोंकी वीरचर्याका विधान करता था, और एक छठा गुणत्रत ( अणुव्रत ) पालता था। इसने पुराने शाम्रोंको अन्यथा रचकर मूढ़ लोकों में मिथ्यात्वका प्रचार किया था। इससे उसे श्रमणसंघसे निकाल दिया गया था। तब उसने काष्ठासंघकी स्थापना की थी। तथा १७ वीं शताब्दीके एक ग्रन्थ वचन कोशमें लिखा कि उमास्वामीके पट्टधर लोहाचार्यने उत्तर भारतके अगरोहा नगरमें इस संघकी स्थापना की थी। मूनिलंखोंमें काष्ठासंघके साथ लोहाचार्यान्वयका उल्लेख मिलता है। इस संघसे सम्बन्धित लेख भी प्रायः उत्तर उश्चिम भारतसे प्राप्त हुए हैं।
काष्ठासंघकी प्रमुख शाखाय या गच्छ चार थे - नन्दिनट, माथुर, वागड़ और लाट बागड़। माथुर गच्छ या संघका संभवतया इतना प्रभाव था कि देवसेनने अपने दर्शनसारमें उसकी पृथक गणना की। उसमें लिखा है कि काष्ठासंघकी स्थापनाके दो सौ वर्ष बाद मथुरामें माथुर संघकी स्थापना रामसेनने