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सामाजिक रूप
२९३ के निर्वाणके बाद इसका खूब पोषण होता रहा है। यह विशेष संभवित है । यह हकीकत मेरी निरी कल्पनामात्र नहीं है किन्तु वर्तमान प्रन्थ भी इसे प्रमाणित करनेके सबल प्रमाण दे रहे हैं। विद्यमान सूत्रग्रन्थों एवं कितनेक ग्रन्थोंमें प्रसङ्गोपात्त यही बतलाया गया है कि 'जम्बू स्वामोके निर्वाणके बाद निम्नलिखित दस बातें विच्छिन्न हो गयी हैं-मनः पर्ययज्ञान, परमावधिज्ञान, पुलाकलब्धि, आहारक शरीर, क्षपकश्रेणि, उपशमश्रेणी, जिनकल्प, तीन संयम, केवल ज्ञान और दसवाँ सिद्धिगमन ।' इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि जम्बू स्वामीके बाद जिनकल्पका लोप हुआ बतलाकर अबसे जिनकल्पके आचरणको बन्द करना और उस प्रकारका आचरण करनेवालोंका उत्साह या वैराग्य भंग करना, इसके सिवा इस उल्लेखमें अन्य कोई उद्देश मुझे मालूम नहीं देता। x x जम्बू स्वामीके निवाणके वाद जो जिनकल्प विच्छेद होनेका वनलेप किया गया है और उसकी आचरणा करनेवालोंको जिनाज्ञा बाहर समझनेकी जो स्वार्थों एवं एकतरफी दम्भी धमकीका ढिढोरा पीटा गया है बस इसीमें श्वेताम्बरता और दिगम्बरताके विषवृक्ष की जड़ 'समायी हुई है।" ___यद्यपि दिगम्बर सम्प्रदाय यह नहीं मानता कि बीचके २२ तीर्थङ्करोंने सचेल और अचेल धर्मका निरूपण किया था। वह तो सब तीर्थङ्करोंके द्वारा अचेल मार्गका ही प्रतिपादन होना मानता है । फिर भी पं० वेचरदासजीके उक्त विवेचनसे संघ भेदके मूलाकारणपर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।
श्वेताम्बर साहित्यमें दिगम्बरोंकी उत्पत्तिके विषयमें एक कथा मिलती है जिसका आशय इस प्रकार है-"रथवीरपुरमें शिवभूति नामका एक क्षत्रिय रहता था। उसने अपने राजाके लिए अनेक युद्ध जीते थे इसलिए राजा उसका खूब सन्मान
१. जनसाहित्यमें विकार पृ० ८७-१०५ ।