________________
जैनधर्म
वर्तमानमें सबसे प्राचीन जैन मूर्ति पटनाके लोहनीपुर स्थानसे प्राप्त हुई है । यह मूर्ति नियमसे मौर्य कालकी है और पटना म्युजियम में रखी हुई है। इसका चमकदार पालिस अभी तक भी ज्योंका त्यों बना है। लाहोर, मथुरा, लखनऊ, प्रयाग आदिके म्यूजियमों में भी अनेक जैन मूर्तियाँ मौजूद हैं। इनमें से कुछ गुप्तकालीन हैं। श्री वासुदेव उपाध्याय लिखा हैमथुरामें २४वें तीर्थङ्कर वर्धमान महावीरकी एक मूर्ति मिली है। जो कुमारगुप्तके समयमें तैयार की गयी थी । वास्तव में मथुरामें जैन मूर्तिकलाकी दृष्टिसे भी बहुत काम हुआ है। श्री राय कृष्णदासने' लिखा है कि मथुराकी शुंगकालीन कला मुख्यतः जैन सम्प्रदायकी है।
२७८
खण्डगिरि और उदयगिरिमें ई० पू० १८८-३० तककी शुंगकालीन मूर्तिशिल्पके अद्भुत चातुर्य के दर्शन होते हैं । वहाँपर इस कालकी कटी हुई सौके लगभग जैन गुफाएँ हैं जिनमें मूर्तिशिल्प भी है। दक्षिण भारतके अलगामलै नामक स्थानमें खुदाईसे जो जैन मूर्तियाँ उपलब्ध हुई हैं उनका समय ई० पू० ३००-२०० के लगभग बताया जाता है। उन मूर्तियोंकी सौम्या - कृति द्रविड़काल में अनुपम मानी जाती है । श्रवणबेलगोलाकी प्रसिद्ध जैनमूर्ति तो संसारकी अद्भुत वस्तुओंमें से है । वह अपने अनुपम सौन्दर्य और अद्भुत शान्तिसे प्रत्येक व्यक्तिको अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है। वह विश्वको जैन मूर्तिकलाकी अनुपम देन है ।
स्थापत्यकला
तीर्थङ्करोंकी सादी प्रतिमाओंके आवासगृहोंको सजाने में जैनाश्रित कलाने कुछ नाकी नही रखा। भारतवर्ष के चारों कोनों में जैन मन्दिरोंकी अद्वितीय इमारतें आज भी खड़ी हुई हैं। मैसूर राज्यके हसन जिलेमें वेलूरके जैन मन्दिर मध्यकालीन
१. भारतीय मूर्तिकला पू० ५९ ।