________________
२४६
जैनधर्म
क्योंकि वह परलोक मानता है, आत्माको स्वतंत्र द्रव्य मानता है पुण्य पाप और नरक स्वर्ग मानता है, तथा प्रत्येक आत्मामें परमात्मा होनेकी शक्ति मानता है । इस सब बातोंका विवेचन पहले किया गया है । इन सब मान्यताओंके होते हुए जनधर्मको नास्तिक नहीं कहा जा सकता। जो वैदिक धर्मवाले जैनधर्मको नास्तिक कहते हैं वे वैदिक धर्मको न माननेके कारण ही ऐसा कहते हैं । किन्तु ऐसी स्थितिमें तो सभी धर्म परस्पर में एक दूसरे की दृष्टि नास्तिक ठहरेंगे। अतः शास्त्रीय दृष्टिसे जैनधर्म परम आस्तिक है ।